जिंदगी के रास्तें में एक चौराहे पर आकर
कभी हम उन्हें तो कभी हम
उनसे हुई मुलाकातों को याद करतें हैं
कभी समंदर के किनारे तो कभी
पगडंडियों पर हम यूं ही ठमक जातें हैं
शीतल मलय पवन में आती उनकी आवाजों में
हम यूं ही बहे चले जातें हैं यूं ही खोये चले जातें हैं
पता नहीं आगे रास्ते में उनसे हमारी मुलाकात कब होगी
जब भी होगी वादा रहा फिर अपनी आँखों को रोने न देंगे….
अमरदीप गौरव
i think this is best poetry i have read
thanku sourav my swt bhai ……
nice poetry…