हे नारी हे आदिसक्ति
माँ का दर्जा है तुम्हारा महान
बहन जैसा है दूजा न स्थान
बेटी तो है घर की जान
अर्धांगिनी पत्नी का है दूसरा नाम
आदि भी तू अन्नादि भी तू
श्रोत भी तू दात्री भी तू
अम्बा भी तू कल्याणी भी तू
कण कण में तू जन गण में तू
हे आदिसक्ति नारी हर क्षण में तू
पर एक विडम्बना ऐसी भी
परछाई बन पीछा करते हवस के पुजारी
दहेजः की छाया में घुट जी रही बन बेचारी
एक आवाहन करता हूँ मैं
उठा बरछी ढाल कृपाण कटारी
बन चंडी बन तू काली
अब नहीं तू अवला नारी
पढ़ेगी तू बढ़ेगी तू
गरजेगी तू चमकेगी तू
अम्बा भी तू भवानी भी तू
परचम तेरा और मर्दानी भी तू
उत्क्रिस्ट है तेरा जीवन
हर पल में एक अवतार है तू
नमन; नमन हे नारी शक्ति नमन..!
अमरदीप गौरव