अवसादग्रस्त या हूं मैं उन्मुक्त मिश्रित मन के संयोजन से एकत्र शब्दों को मैं करता हूं…
तुम विकृत सी बातें कर खुद को उत्कृष्ट समझते हो, उनमुक्त होने की होड़ में साबित क्या करते हो?
चकित हूं क्या ढूंढने आते हो दिन के उज्यारे में? रक्षक बन दीप्तिमान खुद विराजमान हैं जीवन के चौराहे में।
सुनो ऐ सुधाकर बिना मरीची न हो तुम ज्योतिमान, श्रीपति का आदेश हुआ जो ग्रहण मृगांक में लग जाएगा।
© अमरदीप गौरव